बैंक की आत्मकथा
नारायण की शेष शैया पर लक्ष्मी के वियुक्तगण के रूप में मन में मग्र सोच रहा था कि ब्राम्हा की सृष्टि रचना में मेरा क्या उपयोग हो सकता है जिससे मैं व्यक्ति के जीवन का अंग बनकर उसकी सेवा कर सकॅू, इस विचार को लेकर मेने धरा के भारत भूमि में दमयंती के इस नगर में प्रवेश किया, जहॉ पर एक किसान को सिर पर हाथ रखकर वेबस बैठा हुआ, अपने में ही व्यथित। मैंने उसके पास जाकर कान से लगकर पॅूछा, क्या मैं आपके कोई काम आ सकता हॅू। उस किसान ने मुझसे कहा पहले मुर्त रूप से प्रकट हो, तब मुझसे बात करो। मैं 27 अगस्त 1911 में जिले में कुछ समाजसेवी व्यक्तियों के हृदय में भाव रूप से प्रकट हुआ, और उन्हें जानकारी दी कि सन् 1907 में महाकौशल प्रांत के जबलपुर जिले के सिहोरा तहसील में मैं केन्द्रीय सहकारी अधिकोष के रूप में अवतार ले चुका हॅू। आप भी मुझे सहकारी आन्दोलन का प्रथम प्रहरी बनाकर सहकारी विधान 1904 के अन्तर्गत पंजीकृत कराकर सेन्ट्रल बैंक लिमिटेड दमोह के नाम से स्थापित करायें। मेरे बचपन के साथ स्व. श्री दामोदार राव श्रीखंडे, चुन्नीलाल, ठाकुर निहालसिंह, रामरतन मोदी, ठाकुर प्रहलादसिंह, लाला टीकाराम, ठाकुर लक्ष्मणसिंह, भैयालाल नायक, रायबहादुर मनमोहन लाल गोकुलचंद सिंघई, पंडित लक्ष्मीशंकर धगट ने मेरा पंजीयन (सेन्ट्रल बैंक का) रजिस्ट्रार को -आपरेटिव सोसायटी सी.पी. एण्ड बरार के द्वारा 19 अक्टूबर 1911 को कराया। इस तरह मेरा मूलरूप में जन्म हुआ।
19वीं शताब्दी के अंत में केन्द्रीय शासन ने कृषकों के साहूकारों के द्वारा दिये गये कर्ज को जानने के लिए अनेक कमेटियां गठित की थीं, जिसके फलस्वरूप 1904 मे को -आपरेटिव सोसायटी एक्ट का निर्माण हुआ था और मेरे बड़े भाई का जन्म सहकारी संस्था के रूप में भारत के केरल प्रांत में हुआ। जन्म के समय से ही मेरे प्रिय साथी किसान की सेवा, पहला उद्देश्य बन गया। भारत में सन् 1895 के सर फेड्रिक्स निकल्सन की रिपोर्ट के आधार पर मेरे परिवार के रूप में सहकारी संस्थाओं का निर्माण प्रारंभ हुआ, जो क्रमशः सहकारी आन्दोलन के रूप में व्यापक रूप से सामने आया। भारतीय ग्रामीण कृषकों की सा और साधन विहीन कृषि अत्यंत जीर्ण शीर्ण और आर्थिक स्थिति अत्यंत कमजोर एवं कृषि जगत में साहूकारों का अभेद जाल मेरे लिए चुनौती के रूप में सामने आया और मैं संकल्प लेकर इस चुनौती का सामना करने के लिए खड़ा हुआ। बैंक के रूप में पंजीयन के पश्चात् दमोह जिले में 1911-12 में 9 प्राथमिक सहकारी समितियों का पंजीयन किया गया जिसमें मात्र 114 किसान, कृषक सदस्य के रूप में शामिल हुए, तब मेरे पास कार्यशील पूजी के रूप में मात्र 4134.00 रूप्ए थे।
मैंने अपना विस्तार प्रारंभ किया, सन् 1912-13 में। 42 प्राथमिक सहकारी सभाओं का गठन एवं पंजीयन कराया गया, जिसमें सदस्यों की संख्या 719 एवं बैंक की कार्यशील पॅूजी मे 43704.00 रूपया संग्रहित हुए। इस वर्ष में मुझसे जुड़ी संस्थाओं और व्यक्तियों ने व्यक्तिगत अमानतों के रूप में 14200.00 रूपए का सहयोग दिया और यहां से मेरी कार्य करने की गति और प्रगति बढ़ी। बैंक के बाल अवस्था के 10 वर्षो में पंडित मनमोहन लाल जी गुरू, रायबहादुर दामोदर राव श्रीखंडे व राय साहब गोकुलचंद जी सिंघई अध्यक्ष के रूप में विराजमान हुए। मैं फिर उस किसान के पास पहुंचा, जिससे मेरी मुलाकात जन्म से पूर्व थी, मैंने उस किसान से कहा कि अब प्रगट रूप में हॅू। मुझसे क्या चाहते हो, और उसकी मांग पर मैंने बेल खरीदी, बीज खरीदी, मालगुजारी, लगान चुकाना, पुराना कर्ज चुकता, खेती लगान, तरक्की जमीन, हिस्सा, खरीद, घर बनाना, शादी विवाह, गाय भैंस व जमीन खरीद के लिए ऋण देना चालू किया।
मुझे किसानों ने बनाया मैंने किसानों को कर्ज दिया, किसानों ने ही मुझे संवारने के रूप में और लाभ के रूप में मजबूत किया, इस बाल अवस्था के 10 वर्षो में किसानों के हिस्से पर 6 प्रतिशत की दर से लाभांश वितरण किया गया। सन् 1921 में बैंक के अध्यक्ष श्री सेठ सूरजमल जी रईस चुने गए। सन् 1921 तक 107 सहकारी संस्थाओं को पंजीयन कराया गया, किन्तु उसमें से 8 संस्थाओं का पंजीयन निरस्त हो गया। शेष बची 99 सभाएं जिनके सदस्यों की संख्या 1284 थी। सन् 1920-21 का वर्ष सहकारिता के लिए अच्छा नहीं था। संपूर्ण सी.पी. एण्ड बरार के लिए संकट का समय था। सहकारिता सहकारी संस्थाओं को 1922 में बैंक के द्वारा 221000.00 रूपये का ऋण वितरण किया गया और बैंक की कार्यशील पॅूजी 262714.00 रूपए हो गई थी, मैंने हिस्सेदार एवं गैर हिस्सेदार सभी व्यक्तियों से विश्वास अर्जित कर 161910.00 रूपए के अमानतें जमा कर ली थीं और उस समय मैंने लाभांश के रूप में 7 प्रतिशत की दर से वितरण किया। सन् 1922 में पुनः राय साहब पंडित मनमोहन लाल जी गुरू बैंक के अध्यक्ष चुने गये। बैंक ने सन् 1931 तक संकटकालीन स्थिति में समय व्यतीत किया। शासकीय हस्तक्षेप सहकारी संस्थाओं में घुसने लगा। निरंतर सहकारी ंसंस्थाओं का पंजीयन निरस्त होता चला गया, सहकारी संस्थाओं के सदस्यों को दिया गया कर्ज कालातीत हो गया। जिसकी वजह से सन् 1931 तक संस्थाओं की संख्या 64 रह गयी एवं सदस्य संख्या 855 रह गयी। कृषकों को दिया गया कर्ज एवं उसका ब्याज उतना अधिक बाकी रहने लगा कि उसके लिए बैंक का संदिग्ध एवं डूबंत ऋणों के विरूद्ध काफी मात्रा में प्रावधान करना पड़ा जिसके कारण सन् 1930 से बैंक द्वारा लाभ का वितरण भी न हो सका। सन् 1928-29 में बैंक के अध्यक्ष पंडित रामशंकर जी सेलट चुने गये। सेलट जी के कार्यकाल में सबसे महत्वपूर्ण कार्य हुआ वह था, मेरे भवन का शिलान्यास जो 4 अप्रेल सन् 1930 को संपन्न हुआ, और मेरे भवन निर्माण में 6843.00 रूपए व्यय हुए। सन् 1931 को बैंक का कर्ज सहकारी संस्थाओं पर 253973.00 रूपए बैंक की कार्यशील पॅूजी 388,242.00 रूपए और बैंक की अमानतें 202559.00 रूपए थीं। मेरा 1931 से 1940 तक दशक रूग्ण अवस्था में व्यतीत हुआ। देश की आजादी के आन्दोलन में मेरे साथियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। महात्मा गांधी के स्वराज आन्दोलन में स्वदेशी का नारा स्वावलंबन का मंत्र जन-जन में गूंजने लगा था। सन् 1941 के पश्चात् बैंक ने अपना विस्तार और आकार बढ़ाना प्रारंभ किया। सहकारिता का मूल मंत्र बिन सहकार नहीं उद्वार, एक सबके लिए सब एक के लिए, सर्वे भवन्तु सुखनः सहकारी सदस्यों के कानों में गूंजने लगा।
सन् 1941 के पश्चात बैंक ने काफी उन्नति की । 16 सितम्बर सन् 1946 से सहकारी विभाग के सर्किल आडीटर श्री एन.सी. कोचर को प्रतिनियुक्त पर मैनेजर के पद पर लिया गया। इसके पहले श्री दयाराम शर्मा बैंक मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। 30 जून 1947 को बैंक की स्थिति में काफी सुधार हुआ। पुराने कर्ज की वसूली भी काफी तादाद में हुई। नया कर्ज भी पिछले वर्षो से अधिक वितरित किया गया। सभाओं की संख्या में वृद्वि हुई। इस वर्ष 146 सभाएं कार्यरत थीं। जिन पर 186886.00 रूपए का कर्ज बकाया था। बैंक के द्वारा बड़े कास्तकारों को व्यक्तिगत रूप से 500 रू0 से लेकर 1500 रू. तक का कर्ज जमीन के मार्टगेज के ऊपर दिया जाने लगा। इस प्रकार का कर्ज 17,512.00 रू. दिया गया।
इस समय प्रायमरी कृषि साख सभाओं को भी कर्ज दिया जाने लगा, जिसमें लक्ष्मी को-आपरेटिव स्टोर, दमोह जो कि उस समय पूरे मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त स्टोर के रूप में कार्यरत था। उसको माल के तारण पर ऋण दिया गया जो कि 30 जून 1947 को 20,583.00 रू. बकाया था। बैंक के द्वारा सेविंग, चालू, म्यादी अमानतें ली जाने लगी। म्यादी अमानतें 30 जून 1947 को 2,15,610.00 रू. एवं सेविंग अमानतें 9653.00 रू. की जमा थी।
सन् 1946 में इस बैंक ने जमीन रहिन बैंक को जो कि लंबे अरसे के लिए कर्ज देता था, कार्य आरंभ किया। यह कार्य अब तक सागर को-आपरेटिव एण्ड लेण्ड मार्टगेज बैंक दमोह सब डिवीजन की दोनों तहसीलों को किया जाता था। सन् 1946-47 में 12,006.00 रू. का कर्ज इस बैंक को स्थानांतरित किया गया।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् बैंक ने अपने कार्य में काफी उन्नति की। प्रथम पंचवर्षीय योजना जो कि सन् 1951 से लागू हुई। इसके पूर्व 30 जून 1950 तक इस बैंक ने काफी उन्नति की। 30 जून 1950 को बैंक की कार्यशील पॅूजी 5,67,924.00 रू. हो गयी। हिस्सा पॅूजी में भी वृद्धि जो कि 44,792.00 रू. की थी। म्यादी, चालू, और सेविंग अमानतों में वृद्धि हुयी और वह रकम 43,67,786.00 रू. जमा थी। इस वर्ष के अंत तक 140 सहकारी सभाऐं कार्यरत थीं। लिक्यूडेशन में केवल 9 सभाऐं शेष रहीं और उन पर बैंक का कर्ज भी 11358.00 रू. शेष था, साख सभाओं के ऊपर वर्षान्त में 1,51,397.00 रू. कर्ज शेष था। रहिन बैंक के माध्यम से भी जो कर्ज कृषकों को दिया गया था, वह वर्षान्त में 77,292. रू. शेष था। सहकारी साख सभाओं के अलावा अन्य सहकारी संस्थाओं भी जो पिछले वर्षो में गठित की गई थी। इस बैंक से संबंधित थी। इसमें सहकारी स्टोर 12, मल्टीपरपज 10, वेटरलिविंग 2, व्रास मेंटल वर्क्स समिति1, इंडस्ट्रियल 3 उपं 1 एग्रीकल्चरल एसोसियेशन थी।
यह बैंक हुण्डी बिल्टी का कार्य भी संतोषजनक करता रहा। इस वर्ष से बैंक ने पुनः अपने अंशधारियों को मुनाफा का वितरण शुरू किया एवं बैंक के कर्मचारियों को भी 3 माह के मूल वेतन के बराबर बोनस दिया गया। इस वर्ष का वर्गीकरण स वर्ग से ब वर्ग में लाया गया। सन 1946 से इस बै।क में श्री कोचर सा. की जगह श्री सेलट साहिब सर्किल आडीटर को प्रतिनियुक्ति पर प्रबंधक के पद पर सहकारिता विभाग की ओर से भेजा गया।
सन 1951 से प्रथम पंचवर्षीय योजना लागू हुई, जो सन् 1956 में समाप्त हुई। इस पंचवर्षीय योजनान्तर्गत म.प्र. शासन ने सन् 1955 में 25,000.00 रू. की पॅूजी हिस्सा पॅूजी के रूप में दी गई। मार्च 1954 में श्री कृष्णा जी सेलट, जो कि बैंक में प्रबंधक के पद पर प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत थे, सहकारिता विभाग द्वारा वापिस बुला लिये गये, किन्तु महाकौशल के कमजोर बैंकों के लिए सहकारी विभाग द्वारा एक व्यवस्थापक की सेवायें निःशुल्क बैंक को दी गयी। जिसके फलस्वरूप श्री एन.के. मिश्रा सर्किल आडीटर ने बैंक के व्यवस्थापक का पद ग्रहण किया। प्रथम पंचवर्षीय योजनान्तर्गत सन् 1956 में काफी उन्नति हुई। बैंक की हिस्सा पॅूजी 1,56,046.00 रू. हो गई। बैंक की अमानतों में भी बढ़ोतरी जनता के विश्वास पर हुई और वर्षान्त में यह रकम 5,71,801.00 रू. हो गई। सहकारी साख सभाओं की संख्या 276 तक पहुंच गई। सहकारी सभाओं पर वर्षान्त में 7,43,747.00 रू. कर्ज शेष था। लिक्यूडेशन सभाऐें केवल 3 शेष रहीं। बैंक में जो पहिले से संदिग्ध एवं डूबंत ऋण चला आ रहा था। घटकर 1706.00 रू. का शेष रहा। इस वर्ष के अंत तक सहकारी सभाओं का कार्यक्षेत्र 729 ग्रामों तक फैल गया। बैंक ने बराकर पिछले वर्षो से लगातार अंशधारियों को मुनाफा एवं कर्मचारियों को बोनस का वितरण किया। इस प्रकार बैंक पिछले वर्षो की अपेक्षा प्रथम पंचवर्षीय योजनान्तर्गत उन्नतिशील रहा, इसकी कार्यशील पॅूजी 13,82,434.00 हो गई।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना सन् 1956 में प्रथम पंचवर्षीय योजना के समाप्त होते ही प्रारंभ हुई। इस पंचवर्षीय योजना में राज्यों का पुनगर्ठन सबसे महत्वपूर्ण विषय था।
नवम्बर 1956 में नए मध्यप्रदेश के निर्माण के बाद सन् 1958 में दमोह पुनः जिले की इकाई के रूप में जीवित हुआ। सन् 1932 के बाद से 26 वर्ष तक यह केवल सागर जिले के अन्तर्गत सब डिवीजन के रूप में कार्य करता रहा था। सन् 1957 में राज्य शासन ने पुनः इस बैंक के 1,05,000.00 रू. हिस्से खरीद कर अपना योगदान दिया एवं सन् 1959 में पुनः 49,000.00 रू. के बैंक के हिस्से क्रय किये। सन् 1957 में शासन ने दो प्रबंधन की सेवाऐं निःशुल्क प्रदाय की थी, वापिस ले ली। परंतु बैंक ने पुनः शासन से प्रबंधक की सेवाओं के लिए अनुरोध किया एवं श्री जे.पी. शर्मा, सर्किल आडीटर को शासन ने बैंक प्रबंधक के पद पर प्रतिनियक्ति पर भेजा, किन्तु एक वर्ष तक ही श्री शर्मा की सेवाऐं बैंक को उपलब्ध हो सकीं। इसके पश्चात् बैंक ने अपने अतिरिक्त व्यवस्थापक श्री डब्ल्यू.एम. ताटके को पदोन्नत कर व्यवस्थापक के पद पर पदस्थ किया।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना के प्रारंभ होते ही एक नई योजना सहकारी संस्थाओं के गठन की आरंभ की गई और वर्ष 1956-57 में 23 पुरानी साख समितियों का पंजीयन रद्द कर वृहताकार सहकारी साख समितियों का पंजीयन किया गया, जिसमें प्रत्येक समिति को 7500.00 रू. हिस्सा पॅूजी एवं 1200.00 रू. प्रबंधन अनुदान के रूप में दिया गया। एक वृहताकार समिति नोहटा को गोदाम निर्माण के लिए 7500.00 रू. कर्ज एवं 2500.00 रू. अनुदान भी दिया गया। इस प्रकार शासन के द्वारा बैंक के अतिरिक्त प्रायमरी साख सभाओं में भी हिस्सा पॅूजी दिया जाना प्रारंभ हो गया। वर्ष 1957-58 में पुनः 5 वृहताकार साख सभाओ का गठन एवं पुरानी साख सभाओं का पंजीयन रद्द कर किया गया। इन्हें भी शासन के द्वारा हिस्सा पॅूजी प्रबंधन व्यय एवं एक वृहताकार सरखड़ी देवरान को गोदाम ऋण एवं अनुदान दिया गया। वर्ष 1959-60 में पुनः वृहताकार सहकारी साख सभाओं का पंजीयन हुआ और उन्हें हिस्सा पॅूजी व प्रबंध अनुदान दिया गया। इसी योजनान्तर्गत विपणन सभाओं का गठन भी किया गया जिसमें दमोह सब डिवीजनल एग्रीकल्चर एसोसिएशन के नाम की संस्था का पुर्नगठन रीजनल को-आपरेटिव मार्केटिंग सोसायटी के नाम से किया गया। इसके अतिरिक्त बेटर फार्मिग सोसायटी का भी गठन किया गया, जो केवल समिति दायित्व की ही बनी। सन् 1960 में प्रायमरी साख सभाऐं जो कि सीमित दायित्व की थी, उनका पुर्नगठन शुरू किया गया और उन्हें सीमित दायित्व की सहकारी साख सभाओं के उपनियमों में परिवर्तित कराया गया। हटा तहसील स्तर पर जो को-आपरेटिव स्टोर था, उसे भी मार्केटिंग सहकारी सभाऐं कार्यरत हो गयी। बैंक के कार्य में बराबर प्रतिवर्ष उन्नति होती रही और द्वितीय पंचवर्षीय योजना समाप्ति वर्ष में बैंक की स्थिति काफी सुदृढ़ हो गई। बैंक की कार्यशील पॅूजी 13,82,464.00 से 36,40,433.00 रू. हो गई। अमानतें 5,71,801.00 से बढ़कर 12,88,402.00 रू. हो गई। परंतु सहकारी समितियों की संख्या 276 की अपेक्षा 273 ही रही। जिसका मुख्य कारण सहकारी साख सभाओं का पंजीयन रद्द कर उन्हें वृहताकार सहकारी साख सभाओं के रूप में परिवर्तन करना था। सहकारिता का कार्यक्षेत्र 729 ग्रामों से बढ़कर 850 ग्रामों तक फैलाया गया। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह भी हुआ कि मध्यप्रदेश के लिए अलग से सहकारी विधान पास किया गया जिससे सहकारी संस्थाओं की कार्य प्रणाली में जो दोष पहले व्याप्त थे उन्हें दूर कर नई दिशा एवं सहकारी आन्दोलन को सशक्त बनाने के प्रयास किए गए। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में ग्रामीण स्तर पर बैंक की शाखाएं खोलने की योजना भी सामने आई जिससे बैंक की दो शाखाएं ब्लाक स्तर पर खोली गई। इस योजना की समाप्ति वर्ष सन् 1961 के नवनिर्वाचन में पं. कुंजबिहारी लाल जी गुरू, बैंक के अध्यक्ष चुने गए।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना के समाप्त होते हुए, तृतीय पंचवर्षीय योजना का शुभारंभ हुआ। इस योजना में सहकारिता में उन्नति के काफी प्रावधान किए गए। इसमें ग्रामीण सेवा सहकारी समितियों को भी व्यवस्थापकीय अनुदान एवं शासकीय अंशपॅूजी दिया जाना शुरू हुआ। बैंक की अंशपॅूजी में सन् 1962 में 50,000.00 रू. की वृद्धि एवं सन् 1964-65 में पुनः 2,50,000.00 रू. की हुई। मार्केटिंग सोसायटियों को भी अंशपॅूजी, गोदाम ऋण एवं अनुदान दिए गए। वेटर फामिंग सोसायटी को भी अंशपॅूजी के रूप में आर्थिक मदद प्रदान की गई। इस प्रकार तृतीय पंचवर्षीय योजना के अंतिम वर्ष अर्थात सन् 1966 में इस बैंक ने अत्याधिक उन्नति की। बैंक की कार्यशील पॅूजी 36,40,433.00 से बढ़कर 88,62,444.00 रू. हो
गई। हिस्सों की पॅूजी 5,69,601.00 रू. से बढ़कर 13,35,005.00 रू. हो गई। इसके अलावा अमानतों में भी काफी वृद्धि हुई, जो कि 12,88,402.00 रू. से बढ़कर 33,20,170.00 रू. पर पहुची। सहकारी संस्थाओं की संख्या 281 ही रही। सहकारी समितियों का कार्यक्षेत्र 1024 ग्रामों तक पहुचाया गया। तृतीय योजना काल में ग्रामीण शाखाओं की योजनान्तर्गत 4 शाखाओं का शुभारंभ बैंक द्वारा किया गया। इस प्रकार इस जिले में प्रत्येक ब्लाक स्तर पर एक शाखा कार्यरत हो गई।
वर्ष 1964 में माननीय पंडित कुंजबिहारी लाल जी गुरू, अध्यक्ष को शासन के द्वारा मंत्री मंडल में शामिल कर लिया गया, जिसके फलस्वरूप श्री मणीशंकर जी दवे को बैंक का अध्यक्ष चुना गया और तृतीय पंचवर्षीय योजना के अंत तक श्री मणीशंकर जी दवे अध्यक्ष रहे। इस योजना काल में हटा, पटेरा एवं बटियागढ़ शाखा के लिए नवीन भवन निर्माण किए गए।
इस योजना के पश्चात् वर्ष 1967-68 में कोई पंचवर्षीय योजना नहीं रही परंतु इन वर्षो में भी जिले में सहकारिता की उन्नति हुई। 30 जून 1968 में बैंक की कार्यशील पॅूजी 88,62,444.00 से बढ़कर 1,03,60,649.00 रू. हो गई, हिस्सा पॅूजी 13,35,005.00 रू. से बढ़कर 15,10,895.00 हो गई। अमानतों में भी आशातीत प्रगति हुई, जिसमें अमानतें 33,20,170.00 से बढ़कर 39,88,959.00 हो गई। तृतीय पंचवर्षीय योजना के पश्चात् सहकारी समितियों का पुर्नगठन किया गया, जिसमें सभी समितियॉ सीमित दायित्व वाली बनाई गई। इस प्रकार समितियों की संख्या 135 ही रही, परंतु सहकारी समितियों का कार्यक्षेत्र जिले के संपूर्ण ग्राम अर्थात 1401 ग्रामों तक फेल गया।
चतुर्थ पंचवर्षीय योजना पुनः सन् 1969 से लागू की गई और कृषि के लिए सहकारिता के माध्यम से हर प्रकार से उन्नति एवं साधन जुटाने का प्रावधान भी किया गया। वर्ष 1969-70 में माननीय कुंजबिहारी लाल गुरू, नव-निर्वाचन में पुनः बैंक के अध्यक्ष चुने गए उनके अनुभवी और सफल निर्देशन में बैंक अपने काार्य में दिनों दिन प्रगति कर रहा था। 30 जून 1972 को समाप्त होने वाले वर्ष में बैंक की प्रगति के आंकड़े निम्न प्रकार थे -
30 जून 1972 के प्रगति के आंकड़े
अंशपॅूजी | 23,54,065.00 |
रक्षित व अन्य निधियां |
9,10,454.00 |
अमानतें |
67,17,356.00 |
ऋण मध्यप्रदेष बैंक |
1,12,00,000.00 |
विनियोग |
15,98,860.00 |
ऋण सहकारी समितियों पर |
1,85,43,452.00 |
लाभ |
1,41,693.00 |
सन् 1972 में मेरी उम्र 60 वर्ष हो गर्इ्र थी और अपने अच्छे बुरे समय की समीक्षा आ गया था, अपनी कमी कमजोरियों को दूर कर नये भव्य रूप में प्रस्तुत करने के लिए तैयार हुआ और मेरा भव्य बैंक भवन दमोह शहर मध्य निर्मित हुआ। मेरे शरीर (बिल्डिंग) के नव निर्माण की जिम्मेदारी बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष श्री गुरू जी ने बोर्ड के संचालकों की एक (बिल्डिंग) के नव निर्माण कमेटी बनाई, जिसके अध्यक्ष के रूप में श्री सेठ धरमचंद जी को मनोनीत किया गया और जब मेरा नव निर्माण हो चुका, तो पूरे प्रदेश में जिला स्तर पर ऐसा कोई दूसरा भवन नहीं था। इस नव निर्मित भवन का उद्घाटन पंडित श्री श्यामा चरण जी शुक्ल तत्कालीन मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश शासन के द्वारा कराया गया। प्रदेश के जिला सहकारी बैंकों का संगठन मध्यप्रदेश राज्य सहकारी बैंक के रूप में भोपाल स्थापित हो गया था और जिला बैंकों के लिए मार्गदर्शक बैंक के रूप में अपेक्स बैंक की सेवाऐं, मार्गदर्शन, वित्तीय सहयोग अपेक्स बैंक से प्राप्त होने लगा था। तब यह बैंक प्रदेश के श्रेष्ठ बैंकों में से एक था। प्रदेश में सबसे सुंदर भवन इस बैंक का बनाया गया था। सन् 2002 से
वर्ष |
ऋण वितरण |
अमानतें |
कार्यशील पॅूजी |
लाभ हानि |
2002 |
2741.19 |
5478.47 |
7558.44 |
(-) 672.83 |
2003 |
3526.43 |
5763.49 |
8062.59 |
(+) 3.70 |
2004 |
2225.02 |
6266.66 |
8195.09 |
(-) 558.74 |
2005 |
3100.34 |
7233.26 |
9077.42 |
(-) 83.50 |
2006 |
3843.45 |
7932.13 |
9997.42 |
(+) 46.14 |
2007 |
4558.93 |
8286.13 |
10632.41 |
(-) 158.89 |
2008 |
4715.04 |
10282.49 |
11774.69 |
(+) 136.85 |
2009 |
5302.35 |
10741.42 |
13733.33 |
(+) 620.76 |
2010 |
7250.37 |
12196.23 |
16914.29 |
(+) 363.77 |
वर्ष 1996 में बैंक में भर्ती अभियान प्रारंभ हुआ, जिसमें आवश्यकता से अधिक कर्मचारियों की भर्ती होने से स्थापना व्यय भार अत्यधिक बढ़ गया। भर्ती किए गए कर्मचारियों में अधिकतर कर्मचारी अप्रशिक्षित होने के कारण कार्य का प्रतिफल अपेक्षानुसार बैंक को नहीं मिला तथा बैंक लगातार हानि में जाने लगा। बी.आर. एक्ट की धारा 11(1) के अनुपालन में अक्षम हो गया। बैंक कमजोर बैंकों की श्रेणी में वर्गीकृत हो गया। अत्याधिक ब्याज दर पर शीर्ष संस्थाओं से ऋणभार, वसूली की न्यूनतम स्थिति लगातार हानि एवं बैंक के विकास का सक्षम उपाय न होने से पुनः मरणासन्न स्थिति में पहुच गया। सन् 1986 से वर्ष 2002 तक जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक दमोह प्रदेश में कमजोर बैंकों में वर्गीकृत रहा। वर्ष 1977 में विश्व स्तरीय बैंकिंग नियमों में बदलाव होने से बी.आर. एक्ट में भी परिवर्तन हुए सहकारी बैंकों में विवेकपूर्ण मानदंड लागू हुआ, जिला बैंक दमोह की कालातीत ऋण, सार्वजनिक वितरण प्रणाली की अत्यधिक हानि एवं प्राप्ति योग्य ब्याज के विरूद्ध प्रावधान 28 करोडऋ रू. तक किए जाने के कारण बैंक की हानियॉ 35 करोड़ रू. तक हो गई। बैंक कमजोर श्रेणी में होने के कारण अपने आर्थिक संकटों से जुझता रहा। बैंक के लिए सबसे आर्थिक संकट का समय वर्ष 2002 रहा, जब कुछ शरारती तत्वों ने बैंक को बंद होने की अफवाह फैलाकर अमानतदारों के बीच अविश्वास पैदा करकने की कोशिश की थी, किन्तु बैंक के बुद्धिमान अमानतदारों द्वारा अपना भरोसा इस बैंक पर बनाये रखा, अपनी अमानतें बढ़ चढ़कर इस बैंक में जमा की। वर्ष 2003 में इस बैंक के आर्थिक सुधार के लिए कलेक्टर श्री संदीप सक्सेना की अध्यक्षता एवं बैंक प्रबंधक श्री एस.के. कनौजिया के द्वारा मुहिम चलाई गई, ऋण वसूली, अमानत संग्रहण, अंशपॅूजी का संकलन, खर्चो में कटौती, ग्राहक सेवा में सुधार, वित्तीय संसाधनों की बुद्धि जनप्रतिनिधियं का सहयोग, कार्यो में पारदर्शिता, कर्मचारियों में टीम भावना आदि अंगों का समावेश कर पुनः प्रगति के रास्ते पर खड़ा किया गया।
वर्ष 2007 में म.प्र. शासन के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से चुनाव करवाकर संचालक मंडल का गठन किया गया, जिसमें बैंक में निम्नवत् संचालक मंडल वर्तमान में कार्यरत है।
क्र. |
नाम |
पद |
1 |
श्री लखन पटेल |
अध्यक्ष |
2 |
श्री केशव राम पटेल |
उपाध्यक्ष |
3 |
श्रीमती कमलादेवी |
संचालक |
4 |
श्री विवेक शेण्डेय |
संचालक |
5 |
श्री जीतेन्द्र गुरु |
संचालक |
6 |
श्री ईश्वरचंद जैन |
संचालक |
7 |
श्री नरेन्द्र सिंह |
संचालक |
8 |
श्री तोडल प्रसाद |
संचालक |
9 |
श्री पूरन सिंह |
संचालक |
10 |
सहायक आयुक्त सहकारी संस्थाऐं दमोह |
शासकीय प्रतिनिधि |
11 |
मुख्य कार्यपालन अधिकारी |
पदेन सचिव |
12 |
जिला सहकारी केंद्रीय बैंक मर्यादित दमोह |
उपरोक्त संचालक मंडल के कार्यकाल में बैंक ने अपना कार्य व्यवसाय, साख विस्तार, लाभार्जन में वृद्धि की। जिसमें बैंक विगत 3 वर्षो में आर्थिक विकास में अग्रणी बैंकों के रूप में जाना जाने लगा। 31 मार्च 2010 पर धारा 11(1) के अनुपालन में सक्षम हुआ। इसी वर्ष बैंक को आर्थिक विकास दर पर राष्ट्रीय अवार्ड एवं संभाग में श्रेष्ठ समग्र विकास के लिए सर्वाधिक वसूली के लिए एवं सक्षमता विकास के लिए प्रदेश स्तर पर पुरस्कृत किया गया। बैंक की 8 समितियों ने सदस्य स्तर की मांग की 100 प्रतिशत वसूली की। जिसमें से 5 समितियों को प्रदेश स्तर पर पुरस्कृत किया गया। विगत 3 वर्षो में बैंक की आर्थिक सक्षमता के विकास का विवरण निम्नानुसार है - जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक अपनी 17 शाखाऐं एवं एक विस्तार पटल के साथ 102 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के माध्यम से जिले की कृषि अर्थ व्यवस्थाऐं में अपनी अहम भूमिका का निर्वाह कर रहा है। बैंक का निर्वाचित संचालक मंडल दिसम्बर 2007 से पदासीन है, जिममें सभी संचालक गण बैंक के आर्थिक हितों के लिए पूरे समर्पण भाव से नीतियों का निर्माण एवं कार्य निष्पादन की सामयिक समीक्षा करते हैं, जिसके कारण विगत 3 वर्षो में बैंक अपने आर्थिक क्षमता का विकास कर सका है तथा जिले में कर्मचारी, अधिकारियों के अर्थक प्रयास स्वस्थ्य बैंकिंग व्यवस्था के निर्माण में सफल रहा है।
अंशपूजी - बैंक की अंशपूजी 31.03.07 में 514.92 लाख थी । ऋण के अनुपात में अंशपूजी का संकलन, बैंठको के निरंतर समीक्षा एवं कृषकों तथा समितियों से अंशपूजी के लिए प्रेरित करने से आज दिनांक पर बैंक द्वारा 863.51 लाख की अंशपूजी संग्रहित कर ली है। बैंक में शासन की अंशपूजी निरंक है ।
निधियां- बैंक के ऋण अग्रिमों की बडी मात्रा कालातीत रहने के कारण N.P.A. विरूद्ध बैंक द्वारा 2824.89 लाख का प्रावधान करना पडा, जिसके कारण बैंक की संचित हानि 35.00 करोड तक पहुच गई थी । बैंक द्वारा ऋण वसूली कर नवीन ऋणो में गुणवत्ता बढाकर तथा बेहतर लेखा प्रणाली से अपने N.P.A.कम कर लिए है जिसके कारण रू 2923.92 लाख की रक्षित निधियों मे से रू 17.00 करोड की निधिया आवश्यक प्रावधान से अनाधिक हो गई है ।
अमानतें - बैंक की अमानतें वर्ष 2007 में 83.00 करोड थी । बैंक कमजोर श्रेणी में वर्गीकृत होने तथा बैंकिग व्यवहार की कमी के कारण अमानतों का आम अमानतारों के बीच साख की कमी थी । बैंक द्वारा अपनी सोच कार्यो, सघन संपर्क, सामयिक ब्याज निर्धारित तथा निरंतर आम अमानतदारों के बीच संपर्क से नवंबर 10 पर बैंक अमानतें बढकर 139.00 करोड हो गई हैं, जिसमें से 60 प्रतिशत अमानतें सस्ती ब्याज दरों की है ।
ऋण वितरण - बैंक में संसाधनों कमी नावार्ड से लिमिट न मिलने तथा अमानतों की पर्याप्त वृद्धि न होने से वर्ष 2007 में ऋण वितरण रू. 45.58 करोड था जो आज दिनांक पर बैंक द्वारा कृषि ऋण 75.00 करोड एवं कृषि ऋण वाहन, व्यक्तिगत ऋण, साख सीमा, ओव्हर ड्राफ्ट आदि ऋण संविधान मिलाकर रू. 125.00 करोड के ऋण एवं अग्रिम शेष है ।
विनियोजन - बैंक के विनियोजन में पर्याप्त सरप्लस नही होने से बडी मुश्किल से C.R.R. एवं S.L.R. संविधिक अनिवार्यतः की पूर्ती बैंक द्वारा वर्ष 2007 तक की जा रही थी । जून 2008 से आज दिनांक तक तरल आस्तियों में एक दिन भी कमी नही आई है तथा 31.03.10 तक बैंक का विनियोजन रू 48.07 करोड था । 31.01.11 पर विनियोजन 68.00 करोड हो गया है ।
ऋण वसूली - बैंक में ऋण वसूली एवं ऋणों की गुणवत्ता के लिए मासिक समीक्षा बैंठके फील्ड पर आपकी बैंक आपके द्वार जैसे-जागरण अभियान कार्यक्रम के माध्यम से कृषकों से 100 प्रतिशत ऋणों की वसूली का अभियान चलाया गया जिसके परिणाम स्वरूप इस बैंक की वसूली जो कई वर्षो से 50 प्रतिशत हो पाती थी, विगत दो वर्षो में 70 प्रतिशत एवं 72 प्रतिशत ऋण वसूली रही । जिले की 8 समितियों ने कृषकों से ऋण मांग में 100 प्रतिशत कृषकों की ऋण वसूली की, दो शाखाओं ने 100 प्रतिशत और एक शाखा 95 प्रतिशत एवं एक शाखा हटा को छोडकर शेष समस्त शाखाओं ने 60 प्रतिशत से अधिक ऋण वसूली की है, तथा ठण्क्ण्च्ण् प्रशिक्षण में पुनः 100 प्रतिशत ऋण वसूली हेतु बंध निष्पादन हेतु कहा गया है ।
एन.पी.ए. प्रबंधन - शाखा/ समितियों के कर्मचारियों को छण्च्ण्। प्रबंधन एवं प्रावधानों से हानि से बचाने के लिए वसूली अभियान चलाकर विगत 4 वर्षो में कुछ ऋण का 52 प्रतिशत N.P.A.से घटाकर 9 प्रतिशत (जून/सितंबर 10 पर) ला दिया है । तथा N.P.A.प्रावधान राशि रू 18.00 करोड आवश्यक प्रावधान से अधिक हो गई है । विगत वर्ष 222 प्रकरण समितियों के लोक अदालत से निपटान कर N.P.A.कम किया गया, तथा वर्तमान में लोक अदालत में लगभग 500 ऋण प्रकरण में वसूली करने की स्थिति में प्रयास किए जा रहे हैं ।
आर्थिक सक्षमता - बैंक ने 25 वर्ष पश्चात ठण्त्ण्।बजण् की धारा11 (1) के अनुपालन में सक्षमता ग्राहय की है । नेटवर्थ 157.00 लाख से धनात्मक रहा ।
खाद/बीज/कृषि आदान - बैंक द्वारा ऋण व्यवसाय में वृद्धि एवं कृषकों की कृषि आदान आपूर्ती हेतु कृषि विभाग/जिला प्रशासन, विपणन संघ से बेहतर तालमेल तथा जिले के वरिष्ठ माननीय मंत्रीगणो का सहयोग प्राप्त कर जिले में कृषि आदानों की पूर्ती में तथा वितरण व्यवस्था में सख्त नियंत्रण रखकर कार्य किया है । खाद की प्रदेश /देश में कमी के बाद भी दमोह जिले में विगत तीन वर्षो में कृषि आदान आपूर्ती निर्वाध रही हैं । खाद का वितरण जिले में 2007 में 2533 मी.टन. था, जो आज की स्थिति में नवंबर 2010 पर बढकर 7443 हो गया है । जिले की अन्य एजेंसी मिलाकर लगभग 12,000 मी.टन. खाद एवं 8000 क्विटल बीज का वितरण किया जा चुका है ।
किसान क्रेडिट कार्ड - समितियों के माध्यम से 65,000 किसान क्रेडिट कार्ड प्रदाय किए गए हैं ।
गोदाम निर्माण - जिले की 22 समितियों में गोदाम निर्माण जनभागीदारी शासन योजनान्तर्गत रू. 65.00 लाख स्वीकृत कराया जाकर 8 गोदाम पूर्ण कर लिए गए हैं , 10 निर्माणाधीन हैं, शेष का कार्य प्रारंभ किया जा रहा है। उक्त निर्माण समितियों, शासन की देखरेख में निर्माण कमेटी के माध्यम से उच्च गुणवत्ता युक्त कराया जा रहा है ।
अब मैं 100 बरस का हो गया हूं । मुझझे मेरे किसान, ग्राहक, अमानतदार, कर्मचारी, पदाधिकारी, जनप्रतिनिधि, गांव एवं शहरवासी सब मुझझे नई नई अपेक्षाएं करने लगे हैं। अदृश्य से मूतरूप से बाल्यकाल से आज तक कितने अच्छे बुरे दिन आए गए हैं, को भूलकर में संकल्प करता हूं । मैं आपके लिए बना हूं, आपकी सेवा करूगा एवं आपके सुख-दुख में शामिल रहूंगा । आप खुशियां मनाएं में आपको देखकर प्रसन्न रहूंगा । बस आप मुझ पर इसी भांति विश्वास बनाए रखें ।
सर्वे भवन्तु सुखनः सर्वे सन्तु निरामयः
विश्वास के सौ बरस